दिल्लीः देश में अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए राजनीतिक दलों में लोगों को फ्री उपहार देने का चलन कई गुना बढ़ गया है। पहले समय में फ्री मोबाइल, फ्री लैपटॉप, फ्री बिजली, फ्री पानी जैसे उपहार का लालच दिया जाता रहा है। लेकिन कुछ समय से कैश रूपये दिए जाने के वायदे किये जाने लगे है। अब जब मतदाताओं को कैश रूपये देने के वायदों की भरमार हो गई है। राजनीतिक दलों में से कई दल तो कैश रूपये की गिनती बढ़ाने में लगे है। राजनीतिक दलों द्वारा फ्री उपहार की घोषणाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दी गई है। अब सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के लिए एक जनहित याचिका को सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की है। जनहित याचिका दायर करने वाले अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने दलील दी कि याचिका पर लोकसभा चुनाव से पहले सुनवाई की आवश्यकता है। इस पर शीर्ष अदालत ने संज्ञान लिया। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने बुधवार को कहा कि यह जरूरी है और हम इस मामले पर कल सुनवाई जारी रखेंगे।
याचिका में राजनीतिक दलों के ऐसे फैसलों को संविधान के अनुच्छेद-14, 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन बताया गया है। याचिका में चुनाव आयोग को ऐसे राजनीतिक दलों का चुनाव चिह्न को जब्त करने और पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने की मांग की-है, जिन्होंने सार्वजनिक धन से तर्कहीन मुफ्त ‘उपहार’ वितरित करने का वादा किया था। याचिका में दावा किया गया है कि राजनीतिक दल गलत लाभ के लिए मनमाने ढंग से या तर्कहीन ‘उपहार’ का वादा करते हैं और मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाते हैं, जो रिश्वत और अनुचित प्रभाव के समान है।